✅ फिल्म का नाम: माँ (Maa)
✅ रिलीज़ डेट: 27 जून 2025
✅ कास्ट:
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काजोल – अम्बिका
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इंद्रनील सेनगुप्ता – शुवंकर
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खेरिन शर्मा – श्वेता
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रॉनित रॉय – ज्वाइदेव
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जिटिन गुलाटी, दिब्येंदु भट्टाचार्य और अन्य सह कलाकार
अगर आप सोच रहे हैं कि “माँ” एक सीधी-सादी इमोशनल कहानी होगी, तो भाई साहब, थोड़ा संभल जाइए। क्योंकि 27 जून 2025 को रिलीज़ हुई यह फिल्म काजोल की अब तक की सबसे जबरदस्त परफॉर्मेंस लेकर आई है। यह सिर्फ एक माँ की ममता की कहानी नहीं, बल्कि डर, रहस्य और शक्ति का पूरा घोल है।
कास्ट की बात करें तो –
✅ काजोल – अम्बिका (माँ)
✅ इंद्रनील सेनगुप्ता – शुवंकर (पति)
✅ खेरिन शर्मा – श्वेता (बेटी)
✅ रॉनित रॉय – ज्वाइदेव (गाँव का मुखिया)
✅ जिटिन गुलाटी – सरफराज
✅ दिब्येंदु भट्टाचार्य, रूपकथा चक्रवर्ती, सुर्यसिखा दास, यानीय भद्वाज – सह भूमिकाओं में
रिलीज़ डेट:
👉 27 जून 2025 को भारत भर के सिनेमाघरों में दस्तक दी।
कहानी कुछ ऐसी है –
कैंडरपुर नाम के एक छोटे से गाँव में अम्बिका अपने पति और बेटी के साथ रहती है। एक हादसे में पति शुवंकर की मौत हो जाती है। परिवार की खुशियों पर मानो ग्रहण लग जाता है। लेकिन असली मुसीबत तब शुरू होती है, जब गाँव में रात होते ही रहस्यमयी घटनाएं होने लगती हैं।
अम्बिका की बेटी श्वेता के सपनों में एक डरावनी छाया आने लगती है। गाँव का मुखिया ज्वाइदेव (रॉनित रॉय) बार-बार कहता है कि यह सब उनके पूर्वजों के श्राप का असर है। लेकिन अम्बिका मानती नहीं। वह अपनी बेटी को हर हाल में बचाना चाहती है। फिल्म यहीं से सस्पेंस और हॉरर का तड़का लगाती है।
कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब अम्बिका को पता चलता है कि पति की आत्मा उसी डरावने रहस्य में फंसी हुई है। एक माँ, जो पहले डर से कांप रही थी, अब उसी डर से लड़ने के लिए काली का रूप धारण कर लेती है।
अभिनय –
सबसे पहले तो काजोल की तारीफ करनी पड़ेगी। उनकी एक्टिंग इतनी दमदार है कि कई सीन में आप खुद को रोक नहीं पाएंगे। बेटी को गोद में लेकर डर से कांपती माँ और फिर तांत्रिक ज्वाइदेव के खिलाफ खड़ी देवी जैसी स्त्री – दोनों रूपों में वे बेमिसाल लगीं।
रॉनित रॉय ने खलनायक मुखिया के किरदार को बेहद संजीदगी से निभाया। उनकी रहस्यमयी मुस्कान और गहरी आवाज ने किरदार को डरावना बना दिया।
इंद्रनील सेनगुप्ता की मौजूदगी छोटी है, लेकिन कहानी में उनका किरदार महत्वपूर्ण है। खेरिन शर्मा ने बेटी के रोल में अपनी मासूमियत और डर को बखूबी दिखाया। जिटिन गुलाटी, दिब्येंदु भट्टाचार्य और बाकी सह कलाकार भी खूब जमे।
सिनेमेटोग्राफी और तकनीकी पक्ष –
फिल्म की लोकेशन और कैमरा वर्क जबरदस्त है। गाँव का माहौल, काली मंदिर के दृश्य और रात की शूटिंग – सब कुछ बेहद असली लगता है। कहीं-कहीं बैकग्राउंड म्यूजिक इतना असरदार होता है कि आपको सच में डर लगने लगता है।
गीत-संगीत भी कहानी का मजबूत पक्ष है। ‘माँ की ममता’ गाना दिल छू जाता है।
डायलॉग्स –
फिल्म के कई डायलॉग ऐसे हैं, जो सीधे दिल में उतरते हैं।
जैसे –
“माँ डर से नहीं लड़ती, माँ डर को ही डरा देती है।”
“बेटी की चीख अगर किसी को सुनाई देती है, तो वो माँ का दिल है।”
कुल मिलाकर –
माँ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक अनुभव है। यह बताती है कि एक साधारण सी औरत कैसे असाधारण शक्ति का रूप ले लेती है, जब उसकी औलाद पर आंच आती है। कहानी में भावनाओं का समंदर भी है और सस्पेंस-हॉरर का तूफान भी।
अगर आपको ड्रामा, हॉरर और फैमिली इमोशंस पसंद हैं, तो यह मूवी आपके लिए एकदम सही है।
रेटिंग – ⭐⭐⭐⭐ (4/5)
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